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राष्ट्रगीत के सम्मान में

                 26 जनवरी गणतंत्र दिवस पर विशेष
राष्ट्रगीत के सम्मान में- श्री मति गिरिजा कुलश्रेष्ठ
'गाड सेव द क्वीन ' के विकल्प-स्वरूप सन् 1876 में श्री  बंकिम चन्द्र चटर्जी  ने 'वन्दे-मातरम्' की रचना की थी । तब यह गीत हर देशभक्त का क्रान्ति गीत बन गया था । 24 जनवरी 1950 को 'जन-गण-मन' को राष्ट्रगान तथा  इसे राष्ट्रगीत घोषित किया गया लेकिन नेताजी सुभाष चन्द्र ने इसे राष्ट्रगीत का दर्जा बहुत पहले ही दे दिया था । विश्व के दस लोकप्रिय गीतों में वन्देमातरम् का दूसरा स्थान है । लेकिन हमारे मन प्राण में बसा यह गीत सर्वोच्च और सच्चे अर्थ में मातृ-भूमि की वन्दना का गीत है । हमारे स्वातन्त्र्य-आन्दोलन का गान ,वीरों के उत्सर्ग का मान ,और  हर भारतवासी का अभिमान है ।  कई वर्ष पहले  मैंने भी अपने राष्ट्रगीत के सम्मान में  यह  कविता लिखी थी । 

प्रेरणा विश्वास का वरदान वन्दे-मातरम्
तिमिर से संघर्ष का ऐलान वन्दे-मातरम्
गूँज से जिसकी धरा जागी गगन गुंजित हुआ ,
क्रान्ति का दिनमान गौरवगान वन्दे-मातरम् 

गीत यह गाया दिशाओं ने ,क्षितिज के द्वार खोले
रंग सिन्दूरी बिखेरा पंछियों ने पंख तोले 
पर्वतों ने सिर झुका कर रोशनी को राह दी ,
हर गली घर द्वार से  उत्सर्ग को मन प्राण बोले ।
देशहित बलिदान का  सन्धान वन्दे मातरम्

हृदय में जिनके भरा परतन्त्रता का रोष था 
क्लान्ति का ही कोश था, मन में समाहित रोष था ।
प्राण रखकर हाथ, निर्भय आगए रण भूमि में, 
 हुंकार ही जिनकी समूची  क्रान्ति का उद्घोष था 
उन सपूतों का यही  जयगान वन्दे मातरम् ।

गर्व है इतिहास का ,यह तो  नहीं हैं गोटियाँ 
आग पर इसकी न सेको राजनैतिक रोटियाँ 
साम्प्रदायिकता ,अशिक्षा जातिगत दलगत जहर
गहन भ्रष्टाचार का सर्वत्र टूटा है कहर ।
इन सभी से युद्ध का आह्वान वन्देमातरम्

अस्तित्त्व का यह मान है ,सम्पूर्णता का भान है 
मातृ-वन्दन, मन्त्र पावन ,गा इसे जो मिट गए 
जिन शहीदों की प्रभा से मेघ काले छँट गए ।
 जाति का या धर्म का उनको कहाँ कब भेद था,
बस उन्हें तो जननि की परतन्त्रता का खेद था ।
एक था उनका धरम-ईमान वन्दे मातरम् ।

भारती के भाल का यह गर्व है, अभिमान है ।
यह सबेरा है सुनहरा एक लम्बी रात का ,
आत्मगौरव और अपने आपकी की पहचान है ।
 अतुल अनुपम जननि का यशगान वन्देमातरम् ।
प्रेरणा विश्वास का वरदान वन्देमातरम्।
                            रचना-श्री मती गिरिजा कुलश्रेष्ठ
                  साभार श्री मति गिरिजा कुलश्रेष्ठ की साइट यह मेरा जहाँ पर  

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