सम्पादकीय-
आज की पोस्ट समर्पित है नारियों को जिनके गर्भ से इस नर नामक शरीर ने जन्म लिया है माँ जिसका नाम है कितना कष्ट झेलती है किन्तु है मानव तूने इसे भी नही वख्सा हमेशा कोई न कोई जुर्म इस देवी पर करता रहा है।आज अपने मित्र श्री दिनेश गुप्ता रविकर की कुण्डलियाँ आपको भेट कर रहा हूँ जो यथार्थ को वताती हैं। ज्ञानेश कुमार वार्ष्णेय
होय पुरुष का जन्म, हाथ पर चला आरियाँ -
इक नारी को घेर लें, दानव दुष्ट विचार ।
शक्ति पुरुष की जो बढ़ी, अंड-बंड व्यवहार ।
अंड-बंड व्यवहार, करें संकल्प नारियां ।
होय पुरुष का जन्म, हाथ पर चला आरियाँ ।
काट रखे इक हाथ, बने नहिं अत्याचारी ।
कर पाए ना घात, पड़े भारी इक नारी ।।
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2 Comments
बहुत बहुत आभार आदरणीय मित्र ||
ReplyDeleteरविकर जी सादर नमस्कार व आभार यहाँ आने के लिए ।
ReplyDeleteटिप्पणी करते समय अपनी भाषा का ख्याल रखें आपकी भाषा अभद्र न हो।