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सम्पादकीय -तार-तार संसार, खार खा रहा नपुंसक


सम्पादकीय-
आज की पोस्ट समर्पित है नारियों को जिनके गर्भ से इस नर नामक शरीर ने जन्म लिया है माँ जिसका नाम है कितना कष्ट झेलती है किन्तु है मानव तूने इसे भी नही वख्सा हमेशा कोई न कोई जुर्म इस देवी पर करता रहा है।आज अपने मित्र श्री दिनेश गुप्ता रविकर की कुण्डलियाँ आपको भेट कर रहा हूँ जो यथार्थ को वताती हैं। ज्ञानेश कुमार वार्ष्णेय

 
नारी तन-मन गोद, गोद में जिनके खेले -

 शादी कच्ची उम्र में, लाद रहे ड्रेस कोड ।
नए नए प्रतिबंध नित, नारी तन-मन गोद ।
नारी तन-मन गोद, गोद में जिनके खेले ।
कब्र रहे वे खोद, खड़े कर रहे झमेले ।
 सृष्टि खड़ी भयभीत, मजे लेते प्रतिवादी ।
जहाँ तहाँ ले घेर, बनाते जबरन शादी ।। 
होय पुरुष का जन्म, हाथ पर चला आरियाँ -

इक नारी को घेर लें, दानव दुष्ट विचार ।
 शक्ति पुरुष की जो बढ़ी, अंड-बंड व्यवहार ।
अंड-बंड व्यवहार, करें संकल्प नारियां ।
होय पुरुष का जन्म, हाथ पर चला आरियाँ ।
काट रखे इक हाथ, बने नहिं अत्याचारी ।
कर पाए ना घात,  पड़े भारी इक नारी ।।
तार-तार संसार, खार खा रहा नपुंसक 

कामोत्तेजक सीनरी, द्रव्य, धूम्र सहकार।
भ्रष्ट-आचरण, स्वार्थ, दम, तार-तार संसार ।
तार-तार संसार, खार खा रहा नपुंसक ।
पाद रहा अंगार, हुआ जाता है हिंसक ।
नैतिक बंटाधार, थाम सकते तो थामो ।
डूबे देश-समाज, मरोगे सब नाकामो ।।
 
रविकर की और कुण्डलियाँ पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करे
 

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2 Comments

  1. बहुत बहुत आभार आदरणीय मित्र ||

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  2. रविकर जी सादर नमस्कार व आभार यहाँ आने के लिए ।

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