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सोनिया गाँधी की कमेटी नही चाहती थी कि कसाब को फाँसी लगे

राष्ट्रधर्म संकलन साभार प्रभात खबर 

नयी दिल्ली : हमारे देश में कुछ लोग कसाब के हितैषी भी हैं या यूं कहें कि उन्हें कसाब पर दया आ गयी थी. तभी तो कसाब की माफी की पैरवी के लिए 203 लोगों ने राष्ट्रपति से पैरवी की थी. यहां चौंकाने वाली बात यह है कि इन लोगों में नेशनल एडवाइजरी कमेटी के दो मेंबर भी शामिल हैं. इस कमेटी की अध्यक्ष सोनिया गांधी हैं.
इस बात का खुलासा जनता पार्टी अध्यक्ष सुब्रमण्यम स्वामी ने किया है. आरटीआई के जरिए मिली जानकारी के हवाले से उन्होंने बताया कि कसाब की फांसी माफ करने के लिए 203 लोगों ने राष्ट्रपति के पास अर्जी भेजी थी, जिनमें 2 अर्जियां कमेटी मेंबर्स की भी थी.
आरटीआई से साफ हुआ है कि एडवाइजरी कमेटी की मौजूदा मेंबर अरुणा रॉय और पूर्व मेंबर हर्ष मंदर उन पत्रकारों और सोशल ऐक्टिविस्टों में शामिल हैं, जिन्होंने कसाब की फांसी की सजा माफ करने की मांग की थी. सोशल ऐक्टिविस्ट निखिल डे भी कसाब की फांसी की सजा माफ करने की अपील करने वालों में से एक थे, मगर राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने इन सभी अर्जियों को खारिज कर दिया था, जिसके बाद बीते साल 21 नवंबर को कसाब को फांसी दे दी गई थी.
शुक्रवार को जनता पार्टी प्रेजिडेंट सुब्रमण्यम स्वामी ने बताया कि उनकी पार्टी के एक मेंबर ने इस बारे में आरटीआई के तहत जानकारी मांगी थी. उन्होंने मीडिया को आरटीआई के तहत मिले लेटर की कॉपी देते हुए कहा, 'जिन लोगों ने एक आतंकी की सजा माफ करने की मांग की, वही लोग कमेटी में बैठकर देश का भविष्य तय कर रहे हैं.'
इस बारे में जब हर्ष मंदर से बात की, तो उन्होंने कहा मैंने सजा माफी की बात नहीं की थी, सिर्फ फांसी की सजा माफ करने की अर्जी दी थी.' वहीं अरुणा रॉय ने तो इस बारे में बात नहीं की, मगर सोशल ऐक्टिविस्ट निखिल डे बताया, 'मैं और अरुणा रॉय किसी को भी मौत की सजा के पक्ष में नहीं है. हमारा मानना है कि किसी को भी फांसी की सजा के बजाए लंबे समय तक जेल में रखना चाहिए.'

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