आजकल सर्दियों का मौसम चल रहा है और कड़ाके की ठण्ड बेसक हाड़ कँपकपा रही है।लैकिन लगता है कि भारत में आज गर्मियों का मौसम चल रहा है क्योंकि पिछले एक महिने से चल रही बलात्कार की घटना ने जहाँ देश के जनमानस को व्यथित करके रख दिया है वहीं बुद्धिजीवी समुदाय भी रोज नये नये वयान देकर समाज की नब्ज गर्म कर रहैं हैं और समाज का बुखार कम होने की जगह चढ़ता जा रहा है क्योंकि कोई सार्थक वैद्य इस समय समाज को शायद मिल नही पा रहा है लैकिन समाज को भी सोचना चाहिये कि कोई वैद्य जो कि कड़ुवी दबा पिलाता है निश्चित ही रोग की पहिचान करके एसा कर रहा होगा जवकि जो मीठी मीठी दवा खिला रहा है वह निश्चित ही बहुत दिनों तक तुम्हारा लाभ उठानेकी या अपनी दुकान तुमसे चलाने की सोच रहा होगा।कुशल वैद्य तो रोग का रोगानुसार इलाज करता है किन्तु जो कुशल नही है उसे तुम्हारे शरीर की जानकारी तो है ही नही वह तुम्हारे बारे में अच्छे खयालात भी नही रखता है। बात चल रही थी बलात्कार के कारण और निवारण की तो भैया रोग का कारण की बलात्कार होते क्यों है तो इसका उत्तर सभी जानते हैं हाँ कोई बनने की कोशिश करे कि वह नही जानता तो उसे कितना भी बताओ समझ नही आऐगा और जो लोग नग्नता को पसन्द करते हैं वे तो निश्चित ही नग्नता विऱोधी विचारकों को दकियानूसी, ढोगीं और जो भी कुछ कहना चाहेगैं कहेगे ही उस पर तो कोई रोक लगा ही नही सकता क्योंकि सभी जानते हैं कि भैया अगर नग्नता पर रोक लगी तो फिर इन लोगों को जो बुरी आदत लग गयी है नग्नता देखने की वो हसरत पूरी कैसे होगी क्योंकि वे इसी हल्ले में तो अपनी गन्दी भावनाओ का फायदा उठाते हैं।आज भली बात कहने बाला मूर्ख है किसी ने कहा कि आर ऐस एस के प्रचारक शादी नही करते तो वे ही बलात्कार करते हैं शायद हो सकता है कहीं उसने करते देखा हो समाज ने कभी नही देखा और जिसने देखा वह इतने दिनों तक क्या कर रहा था।जिन लोगों की आत्माऐं मर जाती हैं वे विना सिर पैर की बाते करते हैं। वैसे सामाजिकता जिसे कहते है उसमें सभी शास्त्रों ने लिखा है कि शालीनता ही स्त्री का भूषण है और शालीनता रहित स्त्री को कुलटा भी कहा गया है आजकल जैसा फूहड़ पहनावा चल पड़ा है उसे जारी रखते हुये बलात्कार की घटनाओं पर किसी कानून से अंकुश लग सकेगा भाई असम्भब ही लगता है। वैसे भी दिल्ली के अन्दर कई बार मैने स्त्रियो बच्चियों व महिलाओं का आतंक भी देखने को मिला है।जब दिल्ली में बसों में अपने लिए आरक्षित सीटों पर वैठे लड़कों और कई बार तो अधेड़ों व वृद्धों के साथ भी लड़किया असभ्य भाषा का प्रयोग करते हुये लड़किया सीटों से उठाती हैं जो कई बार मानवीय कुण्ठा का कारण निश्चित ही बनता होगा एसा मैरा विचार है।इसी प्रकार कई बार लड़कियों के कपड़े आशिक मिजाज लड़कों को उत्तेजित करते हैं मेरा यह कहना कतई नही है कि लड़कियों को वुरके में रहना चाहिये नही मैरा कहना यह है कि लड़कियों को कम से कम कपड़े पहनते समय शालीनता अवश्य रखनी चाहिये।वैसे लोगों को मेरा विचार दकिया नूसी लग सकता है किन्तु जब बात कहने की आ ही गयी है तो लड़कियों के केवल कक्षा 5 तक ही कोएजूकेशन होनी चाहिये उसके बाद लड़के व लड़कियों के लिए अलग अलग विद्यालय होने ही चाहिये।कई बार नही अधिकतर ही कोएजूकेशन के कारण लड़कियाँ ठगी जाती हैं कई अश्लील सीडी काण्ड इस बात की गवाही दे रहै हैं और जब ये अलग अलग पढ़ेगे तो सम्पर्क भी कम ही हो सकेगा फलस्वरुप दोस्ती दुस्मनी कम ही यदा कदा ही हो सकेगी।देर रात तक जोब करने बाली महिलाऐ व बच्चियाँ सतर्क रहैं क्योंकि अभी भी हम पुलिस पर बहुत भरोसा करने की स्थिति में नही हैं ।
अगर समाज से इस प्रकार के दोषों को समाप्त करना है तो कानून बनाने से पहले एक कानून बनाया जाए कि चलचित्रों तथा अन्यान्य साधनों से नग्नता न तो दिखाई जाएगी और नही समाचार पत्रो पवो डांस बारो इत्यादि पर प्रतिवंध लगाया जाएगा ।नही तो नग्नता अपना असर किसी नकिसी रुप में दिखाएगी ही। ज्ञानेश कुमार वार्ष्णेय
आज की लम्पटता देख कर भाई सुभाष वुढ़ाबन वाला ने लिखा है भगबान के बारे में
अनमोल कृति नारी की दशा भी दयनीय है, कोई भ्रूण हत्या तो कोई दहेज के लिए जला रहा है। उस वक़्त प्रभु के दिल में भी एक दर्द सा उठा, जब देखा उसने भाई- भाई का गला दबा रहा है। - प्रेम, स्नेह, भाईचारा ये सब हुई बीती बातें, यहाँ आदमी आदमी को मारकर खा रहा है।
भेजे थे स्त्री पुरुष सृष्टि उत्थान के लिए, चुनौती देकर यहाँ पुरुष पुरुष रास रचा रहा है।
व्यापार की सारी परिभाषाएँ हुईं बेमानी यहाँ, कोई स्त्री तो कोई भगवान बेचकर कमा रहा है।
न्याय दिलाने वाला अधिवक्ता भी यहाँ, बेईमानों के झूठ को सच बनाकर दिखा रहा है।
सिद्धान्त, आदर्शों, धर्म पर न चलता यहाँ कोई, कोई अपनी ढपली तो कोई अपना राग बजा रहा है। बड़े प्यार से रचा था उसने अपने कर-कमलों से, अपनी दुनिया देखकर आज वो भी पछता रहा है…..!
अपनी दुनिया देखकर आज वो भी पछता रहा है…..!
सुभाष बुड़ावन वाला,18,शांतीनाथ कार्नर,खाचरौद[म्प]
अगर समाज से इस प्रकार के दोषों को समाप्त करना है तो कानून बनाने से पहले एक कानून बनाया जाए कि चलचित्रों तथा अन्यान्य साधनों से नग्नता न तो दिखाई जाएगी और नही समाचार पत्रो पवो डांस बारो इत्यादि पर प्रतिवंध लगाया जाएगा ।नही तो नग्नता अपना असर किसी नकिसी रुप में दिखाएगी ही। ज्ञानेश कुमार वार्ष्णेय
आज की लम्पटता देख कर भाई सुभाष वुढ़ाबन वाला ने लिखा है भगबान के बारे में
अनमोल कृति नारी की दशा भी दयनीय है, कोई भ्रूण हत्या तो कोई दहेज के लिए जला रहा है। उस वक़्त प्रभु के दिल में भी एक दर्द सा उठा, जब देखा उसने भाई- भाई का गला दबा रहा है। - प्रेम, स्नेह, भाईचारा ये सब हुई बीती बातें, यहाँ आदमी आदमी को मारकर खा रहा है।
भेजे थे स्त्री पुरुष सृष्टि उत्थान के लिए, चुनौती देकर यहाँ पुरुष पुरुष रास रचा रहा है।
व्यापार की सारी परिभाषाएँ हुईं बेमानी यहाँ, कोई स्त्री तो कोई भगवान बेचकर कमा रहा है।
न्याय दिलाने वाला अधिवक्ता भी यहाँ, बेईमानों के झूठ को सच बनाकर दिखा रहा है।
सिद्धान्त, आदर्शों, धर्म पर न चलता यहाँ कोई, कोई अपनी ढपली तो कोई अपना राग बजा रहा है। बड़े प्यार से रचा था उसने अपने कर-कमलों से, अपनी दुनिया देखकर आज वो भी पछता रहा है…..!
अपनी दुनिया देखकर आज वो भी पछता रहा है…..!
सुभाष बुड़ावन वाला,18,शांतीनाथ कार्नर,खाचरौद[म्प]
0 Comments
टिप्पणी करते समय अपनी भाषा का ख्याल रखें आपकी भाषा अभद्र न हो।