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दिल्ली गैंगरेप के एकमात्र चश्मदीद गवाह दामिनी के मित्र ने सुनाई खौफनाक कहानी

डिबाई दैनिक प्रभात (ज्ञानेश कुमार)
दिल्ली।दिल्ली गैग रेप के एकमात्र चश्मदीद गवाह व पीड़िता के साथी ने ऐसी खौफजदा कहानी बतायी है कि कोई भी सहम जाए और समाज की सामाजिकता पर भी प्रश्न चिन्ह लगता है कि कोई कितना भी पीड़ित क्यों न हो किन्तु दिल्ली का आम जनमानस पुलिस के चक्कर में न फंसने के लिए विल्कुल भी सहयोग नही करता है और पीड़ित चिल्लाता रह जाता है यहाँ तक कि कोई मदद के लिए चिल्लाता रहै किन्तु लोग सामने खड़े रहैंगे किन्तु मदद नही करेगे ऐसी कहानी सामने आयी है दिल्ली के आम जनमानस की उसके ऊपर पुलिस इससे भी ज्यादा मासाअल्लाह निकली कि तीन तीन पीसी आर वेनों के आने के बाबजूद पीड़ितो को अस्पताल पहुँचाने के वजाय वे ये इस बात में ही उलझे रहै कि कौन मामले को देखेगा।किसकी यह जिम्मेदारी है ठंड का कोहराम होने के बाबजूद तथा शरीर से कपड़े खीचे जाने के बावजूद किसी ने पीड़ितो को कम्बल भी उपलब्ध नही कराया।
हिंदी समाचार चैनल जी न्यूज ने विस्तार से लिया गया उनका इंटरव्यू शुक्रवार शाम को प्रसारित किया। टीवी चैनल ने भी उनका नाम नहीं बताया, लेकिन इनका चेहरा ब्लर किए बगैर दिखाया गया। दामिनी के दोस्त ने कहा कि सिर्फ मोमबत्तियां जलाने से समाज की सचाई नहीं बदलेगी। लोगों की सोच को बदलना बहुत जरूरी है। जरूरी है कि हॉस्पिटल पहुंचाने वालों को पुलिस किसी तरह परेशान न करे।

आरोपी हमें बस से कुचल देना चाहते थे
उन्होंने बताया कि सड़क पर फेंके जाने के बाद आरोपी उन्हें बस से कुचल देना चाहते थे। दामिनी बस के नीचे आने वाली थी, पर उन्होंने किसी तरह खींचकर उसे बस के नीचे आने से बचाया। दोनों उसके बाद सड़क पर पड़े थे, लेकिन आने-जाने वाले भी कोई मदद नहीं कर रहे थे। शायद उन्हें डर होगा कि अगर वे रुके तो पुलिस के चक्कर में फंस जाएंगे। मुझे लगता है यह कानून होना चाहिए कि कोई अगर हॉस्पिटल पहुंचाएगा तो उसे कोई कुछ नहीं कहेगा, कोई कुछ नहीं पूछेगा।
हम चिल्लाते रहे, यार कोई कपड़ा दे दो, पर किसी ने नहीं सुनी
उन्होंने बताया कि सड़क पर दोनों बगैर कपड़ों के थे। हम चिल्लाते रहे कि 'यार कोई ऐंबुलेंस बुलवाओ, कोई कपड़ा दे दो। कोई पुलिस को फोन करो।' आसपास कई लोग खड़े थे। पर सब देखते रहे। किसी ने कपड़ा तक नहीं दिया। गाड़ियां भी गुजर रही थीं। मैने कई कार रुकवाने की कोशिश की। कार में लोग आते थे, कार धीमी करके देखते थे और आगे बढ़ जाते थे।

तीन पीसीआर पहुंचने के बाबजूद भी मदद नही मिली
उन्होंने बताया कि बाद में जब पुलिस को खबर हुई, तो पीसीआर वैन आ गई। तीन पीसीआर वैन आई, लेकिन आधे घंटे तक पुलिस वाले आपस में उलझे रहे कि कौन इस मामले को देखेगा, कि यह किसकी जिम्मेदारी है।

एक सवाल के जवाब में उन्होंने बताया कि स़डक पर फेंके जाने के बाद सफदरजंग हॉस्पिटल पहुंचने में ढाई घंटे का वक्त लग गया। उन्होंने बताया कि सफदरजंग हॉस्पिटल पहुंचने के बाद भी इलाज शुरू होने में काफी देर हुई। मैं तुरंत घर में खबर नहीं देना चाहता था क्योंकि घर वाले डर जाते, मैं चाहता था पहले मेरे सामने इलाज शुरू हो जाए। पर बाद में मैंने किसी को कहा कि अपने मोबाइल से इस नंबर पर फोन कर दे। फिर मेरे घर वाले आए तो उन्होंने मदद की।

इस हादसे के दौरान जिस तरह का व्यवहार उन्हें लोगों से, पुलिस से, हॉस्पिटल से जिस तरह का व्यवहार मिला उससे पूरी तरह असंतुष्ट दिख रहे इस नौजवान ने कहा कि अगर मेरे घर से, परिवार से मुझे मदद नहीं मिली होती, तो या तो मुझे मदद बहुत देर से मिलती या फिर शायद मिलती ही नहीं।

पुलिस कमिश्नर के इस्तीफे से जुड़ सवाल पर उन्होंने कहा कि यह किसी और के कहने या मांग करने की बात नहीं है। मैं मानता हूं पुलिस कोई एक आदमी नहीं होती, लेकिन अगर यह पूरा तंत्र सही तरह से रिऐक्ट नहीं कर पा रहा, बार-बार नाकाम साबित हो रहा है तो उन्हें खुद सोच कर इसकी जिम्मदारी लेनी चाहिए। हमने ऐसे उदाहरण देखे हैं जिसमें जिम्मेदारी लेते हुए लोग इस्तीफा दे देते हैं।
बिल्कुल गलत है दबाव डालने की बात
एसडीएम उषा चतुर्वेदी द्वारा दामिनी का बयान लेने के समय पुलिस द्वारा दबाव डाले जाने की बात को बेबुनियाद बताते हुए उन्होंने इस बात पर हैरत जताई कि आखिर एक महिला होने के बावजूद कैसे वह इस तरह का गलत बयान दे सकती हैं। उन्होंने देखा था कि कितनी मुश्किल स्थिति में, कितनी तकलीफ के बीच उस लड़की ने अपना बयान उन्हें दिया। इसके बावजूद इस तरह का झूठा आरोप लगाकर खुद उन्होंने उस पूरी प्रक्रिया पर पानी फेरने का काम किया।


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